Sunday 2 November 2014

कलम आज अंगारे घोल,


कलम आज अंगारे घोल,
बड़ी रात है घोर कुहाशा दिनकर के न खुलने की न आशा
राहू से ग्रसित चन्द्रमा  आज विकल आर्य भूगोल
कलम आज अंगारे घोल |
शिशुपालो के सम्मानों पर द्रुपदा के तू अपमानो पर
खोल तीसरा नेत्र आज तू दुशासन से बलवानो पर
भ्रकुटी तान खड़ी हो जा तू, आ जाने दे अब भूडोल
कलम आज अंगारे घोल |
विकल मही है विकल है सागर,विकल हिमालय विकल है अम्बर
शेष नहीं सह पा रहे अब, पापो के ये सारे शूल
कलम आज अंगारे घोल |

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