कलम
आज अंगारे घोल,
बड़ी
रात है घोर कुहाशा दिनकर के न खुलने की न आशा
राहू
से ग्रसित चन्द्रमा आज विकल आर्य भूगोल
कलम
आज अंगारे घोल |
शिशुपालो
के सम्मानों पर द्रुपदा के तू अपमानो पर
खोल
तीसरा नेत्र आज तू दुशासन से बलवानो पर
भ्रकुटी
तान खड़ी हो जा तू, आ जाने दे अब भूडोल
कलम
आज अंगारे घोल |
विकल
मही है विकल है सागर,विकल हिमालय विकल है अम्बर
शेष
नहीं सह पा रहे अब, पापो के ये सारे शूल
कलम
आज अंगारे घोल |
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