Sunday 2 November 2014

दर्द-ए -ज़िन्दगी


नयी वफायें


कौन कहता है


कलम आज अंगारे घोल,


कलम आज अंगारे घोल,
बड़ी रात है घोर कुहाशा दिनकर के न खुलने की न आशा
राहू से ग्रसित चन्द्रमा  आज विकल आर्य भूगोल
कलम आज अंगारे घोल |
शिशुपालो के सम्मानों पर द्रुपदा के तू अपमानो पर
खोल तीसरा नेत्र आज तू दुशासन से बलवानो पर
भ्रकुटी तान खड़ी हो जा तू, आ जाने दे अब भूडोल
कलम आज अंगारे घोल |
विकल मही है विकल है सागर,विकल हिमालय विकल है अम्बर
शेष नहीं सह पा रहे अब, पापो के ये सारे शूल
कलम आज अंगारे घोल |

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Monday 27 January 2014


अनवर सुहैल

उसने अपनी बात कही तो
भड़क उठे शोले
गरज उठी बन्दूकें
चमचमाने लगीं तलवारें
निकलने लगी गालियाँ…


चारों तरफ़ उठने लगा शोर
पहचानो…पहचानो
कौन हैं ये
क्या उसे नही मालूम
हमारी दया पर टिका है उसका वजूद
बता दो सम्भल जाए वरना
च्यूँटी की तरह मसल दिया जाएगा उसे…

वो सहम गया
वो सम्भल गया
वो बदल गया
जान गया कि
उसका पाला संगठित अपराधियों से है…